चिंता क्यु ?

चिन्ता क्यो ?

एक हरा - भरा बगीचा माय जेमे तरां तरां का फूल अने तरां तरां का झाड़ पौदा था बड़ो सुन्दर लागीरियो थो इना बगीचा माय नाना – नाना बाळकहुंण सरु झुल्ला अने खेलवा का नरा साधन था जिणकापे बाळकहुंण खेलीरिया था जो इनी बात से अंजाण्या था के उणका मां बाप कंई बिचारी रिया हे वी तो सगळा हिळी – मिळी के खेलीरिया था । इना बगीचा माय नरा समुदाय का लोगहुंण था जो अपणा अपणा झुण्ड माय बठ्या होया अपणी अपणी बात करीरिया था ।

 

रमेश - अरे भैया कंई बतावां आजकल मेंगई घणी बड़िग्यी है ।

 

जगदीस – हां भैया तम सई कइरिया हो देखोनी गंउ को भाव कितरो हुइग्यो ।

 

रघु  – अने तेल को भाव तो आसमान पे चड़िग्यो हे ।

 

महेस, जो उणका माय थोड़ो समजदार थो केवा लाग्यो – इना जमाना को कजा कंई होयगा । म्हारी तो समज माय नी अइरियो के हमारी आवा वाळी ओलादहुंण को कंई होयगा असोज चलतोरियो तो गरीब – गुरबाहुंण भुके मरी जायगा अने पइसावाळाहुंण बी कदत्तक जिन्दा रेगा ।

 

एक हजु झुण्ड बठ्यो थो जेका माय आज का समाज का बारा माय बात–चित चली री थी ।

 

एक मनख बोल्यो – आजकल समाज माय घणो लड़इ – झगड़ो मचीरियो हे काल हमारा मोइला माय भई – भई जमीन जायदाद की वजा से माय - माय लड़ी पड़्या । नाना ने मोटा को माथो फोड़िलाख्यो अबे उणका पुलिस – थाणा हुइग्या कोरट – कचेरी माय केस चलेगा जदे फेसलो होयगा ।

 

दूसरा ने क्यो - तमने सइ क्यो हर जगा असोज हुइरियो हे लोगहुंण जरा जरासी बातहुंण पे लड़ी पड़े एक – दूसरा के मारे कइंको जमीन बले लड़े, कइंको घर बले लड़े, कइंको जात सरु लड़े, कइंको धरम सरु लड़े अबे तो योबी अन्देसो हुइरियो हे के कंई देस पे देस नी चड़ई करी लाखे नी तो संसारिज खतम हुइ जायगा क्योंके असो होयो तो नरा देसहुंण कने एटम बम धर्‌या होया हे एक बी छुटिग्यो या छोड़िद्‌यो तो यो संसारिज खतम हुइ जायगा ।

 

तीसरा ने क्यो – तम ठीक कइरिया हो भैया असो होयो तो हम सगळाज मरी जावांगा कइंको बी नी बचेगा । तो हम कंई करां कसे इनी बातहुंण के रोकी सकां । कंई कदी सतयुग आयगा ।

 

आशीष नाम को एक मनख बी वां बठ्यो थो जो नरी देर से उना नाना – नाना बाळकहुंण के हिळी – मिळी के खेलतो होया देखीरियो थो इणका माय नी तो जात थी, नी छळ थो, नी कपट, नी धरम अने नी काइंकी चिन्ता आड़े आइरी थी वी तो मगन हुइके एक दूसरा का गेले खेलीरिया था । रॉबर्ट इना बाळकहुंण माय सतयुग देखीरियो थो क्योंके असा बखत माय उके इसु की वा घटणा रियाद अई के जदे इसु अपणा चेलाहुंण के उपदेस दइरियो थो तो

 

इसु ने क्यो – इनी वजा से हूं तमार से कूं के अपणा पराण सरु या फिकर मती करजो के हम कंई खावांगा अने कंई पिवांगा, नीज अपणी काया सरु के कंई पेरांगा । कंई पराण भोजन से अने काया लतरा से बड़िके हयनी ? असमान का पखेरुहुंण के देखो के वी नी तो बोय, नी काटे अने नीज खळाहुंण माय भेळा करे, फेर बी तमारो सरगपिता उणके खवाड़े हे । कंई तमारो मोल उणकासे बड़िके हयनी ? तमारा माय से असो कुंण जो फिकर करिके अपणी उमर की एक घड़ी बी बड़ई सके ? लतरा सरु तम कायलेणे फिकर करो ? माळ का फूळहुंण के देखो के वी कसे बदे ! वी नी तो म्हेनत करे अने नी काते,  फेर बी हूं तमार से कूं के तमारो जुनो सुलेमान राजो बी, अपणा आखा विभव माय उणका माय से एक का सरीका बी लतरा पेर्‌यो होयो नी थो । इकासरु अगर परमेसर माळ की घांस के जो आज हे अने काल भट्टा माय झोकि लाखेगा, अस्तरा सजावे, तो हे कमबिसासीहुंण, उ तमारा सरु कायलेणे इणका से जादा नी करेगा ? इकासरु या कइके बिचार मती करजो के हम कंई खावांगा ? या 'कंई पिवांगा ?' अने कंई पेरांगा ?' क्योंके जो परमेसर के नी माने हे वी बड़ा जतन से इनी

सगळी चीजहुंण की हेर माय रे, पण तमारो सरगपिता जाणे हेके तमारे इनी सगळी चीजहुंण कि जरुवत हे ।

वी नाना बाळकहुंण रॉबर्ट के इसु की सीख की मिसाल लागीरिया था । अने उणका माय उके सरग को राज याने सतयुग नगे अइरियो थो ।

क्योंके असी एक घटणा हे जिकासे सिद्द होय की इसु ने बाळकहुंण माय सरग को राज देख्यो थो

       असो होयो के इसु सोइरियो थो अने उका चेलाहुंण घर का बायरे उबा था । चेलाहुंण ने देख्यो के नरी बइराहुंण अपणा नाना- नाना बाळकहुंण के लइके इसु कने अइरी थी

 

चेलाहुंण ने क्यो – अरे तम कां जइरी हो ?

बइराहुंण – हम इसु कने जइरी ।

चेलाहुंण – क्यो ?

बइराहुंण – हमारा नाना-नानिहुंण पे इसु हात धरिके उणके आसीस दे ।

चेलाहुंण – अरे नी नी इसु अबी तो सोयो हे ।

इतरा माय इसु झट बायरे हिट्यो अने चेलाहुंण के डांटिके क्यो:- 

  इसु  – नाना बाळकहुंण के म्हारा कने आवा दो उणके मना मती करो क्योंके सरग को राज असाज को हे । (इना बगीचा माय बी बाळकहुंण ने असो बातावरण बणइ लाख्यो थो ।)

रॉबर्ट सोचवा लाग्यो, “कंई असोनी होय के बड़ा-बड़ा लोगहुंण बी इना बाळकहुंण जसा हिळि-मिळीके रे तो या दुनिया कितरी सुन्दर हुइ जायगा । परमेसर इना लोगहुंण के सद्‍बुध्दि दे ।”   ॥ आमीन ॥